Friday 2 December 2011

रास्ता, पड़ाव और मंजिल (Unknown)


पड़ावों  पर
आराम करने के बहाने
याद कर लेता हूँ  मै राह में खड़ी ठोकरों को
दामन से उलझाते काँटों को
और
उन तमाम पथरीली नोकों को
जो चुभी है मेरे पावों में
कीलों की तरह हमेशा 
मै जानता हूँ
आज 
उस दिन नहीं जनता जानता था
इन बाधाओ  से निपट लेने  का
हुनर
अपने   उस हुनर को भी
याद करता हूँ मै
विश्राम करते हुए 
पड़ावों पर

मुझे याद है
वह दिन
जब मै समझ बैठा था मंजिल
पहले ही पड़ाव को
लेकिन 
अब नहीं समझता ऐसा
क्योंकि 
मै सीख गया  हूँ पढना उन संकेतो को
जो लगाये थे 
मुझसे पहले
गुजरने वाले यात्रियों  में
रास्तो  पर
पड़ावो  पर 

किसी  पड़ाव पर
पावो  से रिसते लहू को देख
अब नहीं होता  
मुझे अफसोस पहले की तरह
क्योंकि
आज मै जानता हूँ
की 
मेरा लहू ही करेगा
संकेत का काम
मेरे पीछे आने वालो  के लिए.